Faridoon Shahryar's Blog


Friday, October 25, 2019

बराबरी का परचम

बराबरी का परचम

फ़रीदूं शहरयार की नज़्म 

अम्मी की परेशानी
कुछ दस्तावेज़ पुराने 
पहचान की शिनाख़्त
वफ़ादारी का सबूत
कितना समझाया
कितना बहकाया
मां का दिल है 
बेचैन है
मुरझाया सा है

एक और मां का फ़ोन आया
"यासिर को फ़ोन करते रहना," उन्होंने कहा
आवाज़ में गुज़ारिश 
सांसों में मायूसी
अपने जाने के बाद भी 
घोंसले को आबाद रखने की
पुरज़ोर कोशिश 

इंशा को में भी तो
हर रोज़ तलख़ीन
करता रहता हूं
एक बेहतर समाज
में मुस्कुराए वो
आज़ादी जहां हक़ हो
भीख की गुहार नहीं
बराबरी का परचम 
जहां पुरसरार बुलंद हो
वहीं सांस ले 
मेरी बच्ची 
मैं चाहे नफ़रत  की आंधी में
फ़ना हो जाऊं
कोई बात नहीं

Monday, October 21, 2019

पागलों की बस्ती

पागलों की बस्ती 
फरिदूं शहरयार की नज़्म 

कोई हवा की वुसअतों को
कैद कर सके 
ऐसा कभी हुआ है क्या
कोई खुशबू की हदों को
एक तंग दायरे में 
महदूद कर सके 
दीवानापन नहीं तो क्या है ये
मौसिखी के मिज़ाज पर
अदाओं के रिवाज पर 
हिजाब कोई डाल सके 
सोचा भी कैसे ये
ये फरमान तो नाजायज़ है
नासाज़ हैं ये सिलवटें 
समाज पर कलंक है
भद्दे से दाग़ ये
पागलों की इस बस्ती में
शोर है अजीब सा 
अपनी ही घुट्ती सांसों में
हसरतों के सिसकने के 
चन्द लम्हे बाक़ी है
ख्वाबों के बीच की ये
दीवार बहुत ऊंची है

Sunday, October 13, 2019

बस यही मकसद है

बस यही मक़सद है
फरीदूं शहरयार की नज़्म 

आंखों ने खज़ाना 
जमा किया है
दरिया की मौजों का
पहाडों की करवटों का
पत्तियों की बौछारों का
समंदर की खामोशी का
सूरज की असूदगी का
रास्तों की परछाइयों का
झरनों की हरकतों का
आसमान के नायाब रंगों का
बर्फ की फूआरों का
झीलों की नग़मगी    का
फूलों की मुस्कुराहट का

ग़मों का पैमाना 
छलका है जब भी
किसी हसीन मंज़र ने
हल्के से हाथ थामा है मेरा 
मुझे और अमीर 
बहुत अमीर होना है
बस यही मक़सद है

Saturday, October 5, 2019

Cheekhta Sannata

Cheekhta sannata
A Nazm by Faridoon Shahryar 

Mustaqbil ko dafn kar
Aaj ko jataane aaye hain
Ragon mein behte paani ko
Uksaane aaye hain
Jadon ko apni khud hi kaat do
Shaakhon se behte khoon ko pocho 
Kal ke zakhmo ko tatolo
Kuredo, aur josh mein aao
Ek naye aaghaaz ka intzaar khatm hua
Aag se ulfat
Aur phir cheekhta sannata


चीखता सन्नाटा
फरीदूं शहरयार की नज़्म

मुस्तक़बिल को दफन कर
आज को जताने आये हैं
रगो में बहते पानी को उकसाने आये हैं
जड़ों को अपनी खुद ही काट दो
शाखों से बहते खून को पोछो 
कल के जख्मों को टटालो कुरेदो, और जोश में आओ
एक नए आग़ाज़ का इन्तिज़ार खत्म हुआ
आग से उल्फत 
और फिर  चीखता सन्नाटा


Insaaf ka naya andaaz

इंसाफ का नया अंदाज़
फरीदून शहरयार की नज़्म

मंसूबे कठघरे में हैं 
अदालत तबेला है 
जहां जानवर 
सलीके से बंधे हैं 
फैसला कब से तैयार है 
जश्न का और सही वक्त का 
इंतज़ार है 
इंसाफ का यह नया अंदाज 
इंसानों को खूब रास आएगा 
खामोशी का अंधेरा 
बादल बन चुका है 
अब चीख़ों की बारिश होगी 
लहू बरसेगा 
क़ुदरत की प्यास 
बुझे ना बुझे 
ख़ुदा का घर जरूर 
भर जाएगा

Insaaf ka naya andaaz 
A Nazm by Faridoon Shahryar 

Mansoobe katghare mein hain
Adalat tabela hai
Jahan jaanvar
Saleeekhe se bandhe hain 
Faisla kab se tayyar hai
Jashn ka aur sahi waqt ka 
Intezaar hai
Insaaf ka ye naya andaaz 
Insaanon ko khoob raas aayega 
Khamoshi ka andhera
Baadal ban chuka hai
Ab cheekhon ki baarish hogi
Lahoo barsega
Qudrat ki pyaas 
Bujhe na bujhe 
Khuda ka Ghar zaroor 
Bhar jayega

Kal ki peshengoi

Kal ki peshengoi 
A Nazm by Faridoon Shahryar 

Khwaab ki tasveer 
Adhoori si hai
Koi hasrat kahin
Dil ke kisi kone mein
Bechain si muskurahat ko
Qaid kare baithi hai
Parindo ki fauj 
Bakhoobi tayyar hai
Vo yaad dilaate rahte hain 
Udna sirf unka kaam hai
Tumhen zameen par sisakna hai, ghisatna hai
Khel ke khatm hone par
Taaliyon ki goonj ka
Chhota sa hissa ho tum
Azaadi girvi hai tumhaari 
Kya sochna hai
Kya bolna hai
Kise chaahna hai
Sab hum tai karenge
Tumhe sirf khush dikhne ka naatak karna hai
Tum mahfooz ho
Kal ki peshengoi 
Tumhaari saanso ki 
Kheemat tai karegi 
Keede makodon se seekho
Aur chalte raho