Faridoon Shahryar's Blog


Saturday, November 16, 2019

मैं तय्यार हूं

मैं तय्यार हूं 
फ़रिदून शहरयार की नज़्म 

रगों में ख़ून की मिक़दार कुछ कम है
पानी भी है थोड़ा सा शायद
समझौता किया है
एक बार फिर से
दरिंदों की चीख़ों
में अब वो बात नहीं 
वो दहाड़ते अब भी हैं
पर फिर भी सो जाता हूं 
थोड़ा मुश्किल से ही सही 
लेकिन हस्ता रहता हूं 
किसी ना किसी बहाने से 
जीने की लत को नया जामा 
पहनाने की कोशिश में तल्लीन हूं
कोई और फ़रेब बुनो 
जाल फेको 
वो हर ख़्वाब जो तुमने देखा था
शायद ज़रूर कामयाब होगा 
मैंने भी ठान लिया है
खुशी से दोस्ती क़ायम रखूंगा 
आसुओं में लतपत सही 
उनकी नमी तुम्हारे आंखों के
दर तक नहीं पहुंचेगी 
आओ आगे बढ़ो 
मैं तय्यार हूं

Saturday, November 2, 2019

आस की कश्ती

आस की कश्ती 
फ़रीदून शहरयार की नज़्म 

बादलों के पार
ख़्वाब झील में
आस की कश्ती 
ख़ामोश उम्मीदों को
जज़्ब किए
बहे जा रही है

पहाड़ों का पैग़ाम 
आसमान पर 
गहरे हुरूफ़ में 
नाज़िल हुआ है
आंखों से नाउमीदी को पोछो
उठो, हाथ बढ़ाओ 
मुस्कुराओ