Faridoon Shahryar's Blog


Monday, February 10, 2020

जुर्रत का जंगल

जुर्रत का जंगल 
फ़रिदून शहरयार की नज़्म 

डरे सहमे हिरन को 
कुछ भेड़ियों ने
नोचने की कोशिश 
क्या खूब की 
बेनियाज़ शेर
अपनी हिकमत
से मूह मोड़ कर 
झुके हुए ज़मीर का 
बोझ लिए 
दूर चला गया 

चूटियों की फ़ौज
पहाड़ सा जोश लिए 
आगे बढ़ी 
लड़ी जी जान से 
दरिंदों के जिस्म 
में ज़हर था 
नुकीले दांतो में 
ख़ून की हवस 
सांसों में 
नफ़रत की बदबू 
ज़र्द नदी कांप उट्ठी 

जुर्रत के जंगल में 
कुछ ऐसा हमने देखा है 
शेरों के माथे पर पसीना है
जीत की ख़्वाहिश
मासूम सा ख़्वाब
लहू रगों में बेहिसाब 
मौत की परवाह से बेपरवाह अब
इंकलाब में ग़ज़ब का नशा है

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