शक ना करो
फ़रीदून शहरयार की नज़्म
सर्द हवा ने कहा
इस रात को ढल जाने दो
बस दो तीन पहर
गुज़र जाने दो
शक ना करो
थोड़ी ही तो तकलीफ़ है
ख़ुशनुमा सुबह होगी
जन्नत सा समा होगा
पूरे होंगे सारे अरमां
शक ना करो
बर्फ़ की तहें जमी हैं
सांसों की लौ मद्द्धम हो चली है
आंखों के आइने में
ख़्वाबों को दफ़न होते देखा
फ़िर वही आवाज़ गूंजती है
सूरज भेस बदल के आया है
तपिश को महसूस करो
शक ना करो
No comments:
Post a Comment