अनाथ रात
फरिदूं शहरयार की नज़्म
खौफ़ में लिपटी बदहवास रात
चीखों से गूंजती अनाथ रात
दहशतगर्द हैं सड़कों की रोनक़
लहू में नहाई खौफ़नाक रात
अंधेरा है हद ए निगाह के भी आगे
नारों की जंग है ये डर की रात
सवेरे पर पहरा लगाए बैठा है जानवर
जोश ए जुनून के सहारे है लाचार रात
उजालों से गुरेज़ है इक हुक्मरान को
नाकामी के तख्त पर है आवारा रात
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