Faridoon Shahryar's Blog
Monday, February 17, 2020
Wednesday, February 12, 2020
शक ना करो
शक ना करो
फ़रीदून शहरयार की नज़्म
सर्द हवा ने कहा
इस रात को ढल जाने दो
बस दो तीन पहर
गुज़र जाने दो
शक ना करो
थोड़ी ही तो तकलीफ़ है
ख़ुशनुमा सुबह होगी
जन्नत सा समा होगा
पूरे होंगे सारे अरमां
शक ना करो
बर्फ़ की तहें जमी हैं
सांसों की लौ मद्द्धम हो चली है
आंखों के आइने में
ख़्वाबों को दफ़न होते देखा
फ़िर वही आवाज़ गूंजती है
सूरज भेस बदल के आया है
तपिश को महसूस करो
शक ना करो
Monday, February 10, 2020
जुर्रत का जंगल
जुर्रत का जंगल
फ़रिदून शहरयार की नज़्म
डरे सहमे हिरन को
कुछ भेड़ियों ने
नोचने की कोशिश
क्या खूब की
बेनियाज़ शेर
अपनी हिकमत
से मूह मोड़ कर
झुके हुए ज़मीर का
बोझ लिए
दूर चला गया
चूटियों की फ़ौज
पहाड़ सा जोश लिए
आगे बढ़ी
लड़ी जी जान से
दरिंदों के जिस्म
में ज़हर था
नुकीले दांतो में
ख़ून की हवस
सांसों में
नफ़रत की बदबू
ज़र्द नदी कांप उट्ठी
जुर्रत के जंगल में
कुछ ऐसा हमने देखा है
शेरों के माथे पर पसीना है
जीत की ख़्वाहिश
मासूम सा ख़्वाब
लहू रगों में बेहिसाब
मौत की परवाह से बेपरवाह अब
इंकलाब में ग़ज़ब का नशा है
Sunday, February 9, 2020
अनाथ रात
अनाथ रात
फरिदूं शहरयार की नज़्म
खौफ़ में लिपटी बदहवास रात
चीखों से गूंजती अनाथ रात
दहशतगर्द हैं सड़कों की रोनक़
लहू में नहाई खौफ़नाक रात
अंधेरा है हद ए निगाह के भी आगे
नारों की जंग है ये डर की रात
सवेरे पर पहरा लगाए बैठा है जानवर
जोश ए जुनून के सहारे है लाचार रात
उजालों से गुरेज़ है इक हुक्मरान को
नाकामी के तख्त पर है आवारा रात
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