बस यही मक़सद है
फरीदूं शहरयार की नज़्म
आंखों ने खज़ाना
जमा किया है
दरिया की मौजों का
पहाडों की करवटों का
पत्तियों की बौछारों का
समंदर की खामोशी का
सूरज की असूदगी का
रास्तों की परछाइयों का
झरनों की हरकतों का
आसमान के नायाब रंगों का
बर्फ की फूआरों का
झीलों की नग़मगी का
फूलों की मुस्कुराहट का
ग़मों का पैमाना
छलका है जब भी
किसी हसीन मंज़र ने
हल्के से हाथ थामा है मेरा
मुझे और अमीर
बहुत अमीर होना है
बस यही मक़सद है
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