Tuesday, December 31, 2019

हसे भी हम रोए भी हम

हसे भी हम, रोए भी हम 
फ़रिदून शहरयार की नज़्म 

मज़ाक़ था
हसे भी हम 
संजीदा हुए 
रोए भी हम 
रेत का घर 
तामीर हुआ 
तसव्वुर के संगेमरमर से
मर मर गए हम 
हिमाक़त पे

अहमक़ों की जमात ने
फैसला कुछ ऐसा किया 
सुबह-ए-ऐलान 
एक बार फ़िर हुआ
जुनून मिस्मार हुआ 
चर्चा क्या ख़ूब रही 
नाव काग़ज़ की
चुपचाप से 
डूब गई

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