Saturday, November 2, 2019

आस की कश्ती

आस की कश्ती 
फ़रीदून शहरयार की नज़्म 

बादलों के पार
ख़्वाब झील में
आस की कश्ती 
ख़ामोश उम्मीदों को
जज़्ब किए
बहे जा रही है

पहाड़ों का पैग़ाम 
आसमान पर 
गहरे हुरूफ़ में 
नाज़िल हुआ है
आंखों से नाउमीदी को पोछो
उठो, हाथ बढ़ाओ 
मुस्कुराओ

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