मैं तय्यार हूं
फ़रिदून शहरयार की नज़्म
रगों में ख़ून की मिक़दार कुछ कम है
पानी भी है थोड़ा सा शायद
समझौता किया है
एक बार फिर से
दरिंदों की चीख़ों
में अब वो बात नहीं
वो दहाड़ते अब भी हैं
पर फिर भी सो जाता हूं
थोड़ा मुश्किल से ही सही
लेकिन हस्ता रहता हूं
किसी ना किसी बहाने से
जीने की लत को नया जामा
पहनाने की कोशिश में तल्लीन हूं
कोई और फ़रेब बुनो
जाल फेको
वो हर ख़्वाब जो तुमने देखा था
शायद ज़रूर कामयाब होगा
मैंने भी ठान लिया है
खुशी से दोस्ती क़ायम रखूंगा
आसुओं में लतपत सही
उनकी नमी तुम्हारे आंखों के
दर तक नहीं पहुंचेगी
आओ आगे बढ़ो
मैं तय्यार हूं